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Saturday 4 October 2008

पैसा बोलता है

अगर पैसा बोल सकता तो क्या बोलता ? शायर साइ आजाद नें इस कल्पना को एक ग़ज़ल में तामीर किया है और उतनी ही खूबसूरती के साथ साबरी बंधुओं ने इसे गया है ।

संसार में बाजे ढोल,
यह दुनिया मेरी तरह है गोल,
की पैसा बोलता है
हारून नें मुझको पूजा था,
फिरओँ भी मेरा शैदा था,
षड्दात की जन्नत मुझे मिली,
निम्रोड़ की ताक़त मुझसे बनी,
जब चढ़ गया मेरा खुमार,
खुदा के हो गये दावेदार,
की पैसा बोलता है


हर शख्स है मेरे चक्कर में,
है मेरी ज़रूरत घर घर में,
जिसे चाहूं वो खुशहाल बने,
जिसे ठुकरा दूं कंगाल बने
यह शीशमहल, यह शान,
मेरे दम से पाए धनवान,
की पैसा बोलता है


मैं आपस में लड़वाता हूँ ,
लालच में गला कटवता हूँ,
जहाँ मेरा साया लहराए,
कस्तूरी खून भी छुप जाए,
मैं कह देता हूँ साफ़ ,
मेरे हाथों में है इंसाफ़,
की पैसा बोलता है


कहीं हदिया हूँ,कहीं रिश्वत हूँ,
कहीं गुंडा टॅक्स की सूरत हूँ,
कहीं मस्जिद का मैं चंदा हूँ,
कहीं ज्ञान का गोरखधंधा हूँ,
है पक्के मेरे यार,
मौलवी पंडित थांनेदार,
की पैसा बोलता है


जब लीडर मैं बन जाता हूँ,
चक्कर में क़ौम को लता हूँ,
फिर ऐसा जाल बिछाता हूँ,
की मन के मुरादेँ पाता हूँ,
मैं जिस पे लगा दूं नोट,
ना जाए बाहर उसका वोट,
की पैसा बोलता है

की हर साज़ में है संगीत मेरा,
फनकार क लब पे गीत मेरा,
हर रख्स में है रफ़्तार मेरी,
हर घुँगरू में झंकार मेरी,
यह महफ़िल यह सुर ताल,
हो गानेवाली या क़व्वाल,
की पैसा बोलता है


कोई साइ था आबाद रहा,
मेरी जुल्फोँ से आज़ाद रहा,
हर दौर में ज़िंदाबाद रहा,
और दोनो जग में शाद रहा,
रब बख्से जिसे ईमान,
छुड़ाए मुझसे अपनी जान,
की पैसा बोलता है

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