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Saturday 30 May 2009

Go zara see baat pe...


गो ज़रा सी बात पे बरसों के याराने गए,
लेकिन इतना तो हुआ की कुछ लोग पहचाने गए

मैं इसे शोहरत कहूं या अपनी रुसवाई कहूं
मुझसे से पहले उस गली मैं मेरे अफ़साने गए

यूँ तो वो मेरी रग-ऐ-जां से थे नज़दीक तर
आंसुओं के धुंध में लेकिन न पहचाने गए

वहशतें कुछ इस तरह अपना मुक़द्दर हो गई
हम जहाँ पहुचे हमारे साथ वीराने गए

क्या क़यामत है की 'खातिर' कुश्ता-ऐ-शब् भी थे हम
सुबह जब हुई तो मुजरिम हम ही गर्दाने गए
' खातिर गजनवी '

1 comment:

Yugal Joshi said...

add one more .. garmiy-e-mehfil fakat ek naara-e-mastaana tha, aur wo khush hein ke iss mehfil se deewane gaye